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आलेख: प्रलोभनों-लुभावने वादों की राजनीति- शमीम शर्मा

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अब तक तो यह सुनते आये थे कि पिंजरे में रोटी के टुकड़े की जगह पनीर का टुकड़ा लटकाने पर चूहा धीमे से पूछता था— इलेक्शन आ गये हैं क्या? अब वह सवाल दागता है कि सिर्फ पनीर से काम नहीं चलेगा। उनके हाथ में लिस्टें हैं और जुबान में चुनौती है कि हमारा अमुक काम करवाओ तो इलेक्शन में आगे बढ़ो वरना अपना बिस्तरा-बोरिया समेट लो।
वाह! वाह! वाह! चूहे सीना चौड़ा करना और सवाल दागना सीख गये हैं।
पनीर का लालच देने वाले अब लैपटॉप, स्कूटी देने की बातें करते हैं। मुफ्त के बिजली-पानी देने के वादों से जनता को ललचाते हैं। दो-चार रुपये किलो के भाव से चीनी-दाल और चावल का लालच देना एक तरह से वोटों की खरीद-फरोख्त ही तो है। लाखों-करोड़ रुपयों की कर्जा माफी क्या खुल्लम-खुल्ला रिश्वत-बांट नहीं है?
दाल-रोटी हमारे गरीब मुल्क में करोड़ों लोगों के लिये बहुत बड़ा सवाल है पर लालच देकर किसी को अपनी आत्मा गिरवी रखने पर मजबूर करना गरीबी का उपहास नहीं तो और क्या है?
चुनावों की तारीख घोषित होने पर एक मनचले का कहना है कि अब पता चलेगा कि मोहल्ले में कौन-सी लड़की 18 साल की हो गई है। चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद वोट डालने का अधिकार मिलता है। वोट डालने के बाद उंगली पर लगा स्याही का दाग इस बात का संकेत है कि जिस तरह स्याही का दाग कई दिन तक नहीं जाता वैसे ही दागदार नेता भी जल्दी से पिंड नहीं छोड़ता, अत: दागदार की बजाय ध्यान से शानदार को चुनें। भोली-भाली जनता नेताओं की चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर अपना वही हाल कर लेती है जो मुंडेर पर बैठे उस कौए का हुआ था, जिसके मुंह में एक रोटी का टुकड़ा था। नीचे बैठी चालाक लोमड़ी उससे बार-बार कहने लगी कि तुम्हारी आवाज बहुत मीठी है, एक गाना सुनाओ न। बेचारे कौए ने लोमड़ी की बातों में आकर जैसे ही चोंच खोली कि चोंच में पकड़ी रोटी से भी गया। अपने देश का चुनाव सिस्टम एक भूलभुलैया है। चुपड़ी लेने के चक्कर में अपनी रूखी-सूखी भी जाने का डर है। इसलिये बुजुर्गों की नसीहत है कि किसी के लालच में न आयें और जो लालच देने की चेष्टा करे उसे दिन में तारे गिनवा दें।
नोट: उपरोक्त लेख लेखक के निजी विचार है.
 


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