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आलेख: संगीत की नि:स्वार्थ सेवा और समर्पण के प्रतीक हैं-पद्ममश्री मदन चौहान

आलेख: संगीत की नि:स्वार्थ सेवा और समर्पण के प्रतीक हैं-पद्ममश्री मदन चौहान
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भारत सरकार अपने नागरिकों को उनके अद्वितीय योगदान के लिए विभिन्न सम्मान प्रदान करती है । विगत कुछ वर्षों में पद्मसम्मान भारत सरकार द्वारा ऐसे कुछ महत्वपूर्ण और बिरले लोगों को प्रदान किया गया है, जिन्होंने अपनी मिट्टी से जुड़कर, ह्रदयतल की गहराइयों से, नि:स्वार्थ, निष्काम भाव से अपना कर्म किया है, साधना की है, सेवा की है ।
इसी कड़ी में भारत सरकार द्वारा वर्ष-2020 के लिए प्रदत्त पद्मसम्मानों में एक नाम छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय संगीतकार मदन चौहान का भी है । मदन चौहान जी की गायकी एक उन्मुक्त बहते झरनें की तरह है, जिसमें प्रवाह है, सादगी है, मौलिकता है, फकीराना अंदाज है, तो साधना की बानगी भी । संगीत का हर रंग फिर चाहे वो भजन हो, गजल या कव्वाली मदन चौहान जी उसे अपने अंदाज में ढाल लेते है ।
अपनी संगीत यात्रा की शुरुआत का जिक्र करते मदन जी कहते है कि 10 वर्ष की उम्र में वे डब्बे बजाते थे, गरीबी का दौर था, डब्बे से शुरु हुआ सिलसिला ढोलक तक आ पहुंचा, ढोलर बजाते-बजाते आर्केस्ट्रा की तरफ आकर्षित हुए, उम्र का तकाजा था । इसके बाद कुछ लोगों ने सलाह दी कि अगर तबला बजाएं तो बेहतर होगा । तो फिर वहां से तबले की शुरुवात हुई । तबले की आरंभिक शिक्षा आपने आकाशवाणी के कन्हैया लाल भट्ट से और जगन्नाथ भट्ट से ली । आप अजराड़ा घराने के ख्याति लब्ध उस्ताद काले खां को गंड़ाबंध शागिर्द बने । तबला सीखने और सिद्धहस्त होने के बावजूद मदन जी के अंतस में एक गायक कंठ छिपा था, जिसमें गायकी के प्रति निश्चल इच्छा शक्ति थी । पहले-पहल दूसरे लोगों की तरह उन्हें भी फिल्मी संगीत ने प्रभावित किया । महान संगीतकार नौशाद, हेमन्त कुमार की धुनों से वे बंध से गए थे । उसके बाद उन्हें शंकर जयकिशन, मदनमोहन रोशन, सरदार मलिक आदि संगीतकारों ने भी काफी प्रभावित किया ।
मुलत: रायपुर शहर से ताल्लुक रखने वाले मदन जी उस दौर को याद करते कहते हैं कि काफी पिछड़ा व देहाती इलाका था । बिजली भी नहीं थी, सिर्फ रेडियों में सुकर संगीता का आनंद मिलता था । अपनी शिक्षा के बारें में बताते मदन जी कहते हैं कि उन्होंने मैट्रिक तक पढ़ाई की और फिर नौकरी की तलाश में लग गए, लेकिन साथ ही संगीत के शौक ने उन्हें एक मुकाम दिया । मदन जी ने आरम्भिक दौर में संगीत में संगत की फिर रुख किया आर्केस्ट्रा का । आर्केस्ट्रा और फिर तमाम संगीत समूहों के साथ संगत करते-करते आकाशवाणी में भी अपनी जगह बनाई । पुराने दौर को याद करते मदन जी रोचक संस्मरण सुनाते कहते है कि खमतराई में स्थित ट्रांसमीटर से ही प्रसारण होता था आकाशवाणी का । स्टूडियों नहीं बना था । उस दौर में साजों सामान भी कम था, फिर भी रेडियो की अपनी दुनिया थी, लोग रेडियों में आने को लालायित रहते थे ।
मदन जी गर्व से कहते है कि उन्हें सही पहचान रेडियो से ही मिली । अपनी पहली रिकार्डिंग को याद करते वे कहते हैं कि उन्होंने लोकगायक स्व. शेख हुसैन, रहमान शरीफ और निर्मला इंगले जी के साथ संगत की थी और छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में अपनी प्रस्तुति दी है । उन्होंने अपने लोगों के बीच अपना संगीत प्रस्तुत कर गर्व का अनुभव किया, नि:स्वार्थ भाव से लोगों का मनोरंजन करते रहे । लोक संगीत में मदन जी ने काफी काम किया पर सुगम संगीत में नामचीन कलाकारों के साथ संगत की जैसे- राहत अली, चंद्रकांत गधर्व, पुष्पा हंस और अहमद हुसैन मोहम्मद हुसैन अच्छे और बड़े कलाकारों के साथ संगत करते-करते मदन जी का मन गायकी की तरफ मुड़ गया । गाना तो ह्रदय की गहराइयों में था ही, रुहानियत सी की अच्छा संगीत सुनते थे तो बस वही से शुरुवात हुई गाने की । तबले के साथ-साथ अब गाना सुकुन देने लगा, गजलों की तरफ उनका रुझान काफी था । गायन, वादन के साथ-साथ मदन जी अपने साजो कि रख-रखाव के लिए भी जाने जाते हैं, वे कहते हैं कि साज को बेहतर ढंग से रखना और उसके बारे में जानना बेहद जरुरी है ।
संगीत में साधना, तपस्या, समर्पण के साथ मदन जी ने समाज को बहुत कुछ दिया । धर्म-निरपेक्षता की मिसाल पेश करते भजन भी गाए, कव्वाली भी गाई, गुरुवाणी भी सुनाई । बच्चों को संगीत की तालीम लगातार देते रहे । 74 वर्ष की आयु में भी सक्रिय मदन जी कहते है कि क्षेत्र की प्रतिभाएं आगे आएं और छत्तीसगढ़ का नाम रोशन करें, इसके लिए सदैव तत्पर रहते हैं । संगीत में निर्गुण रंग को अपनी अनोखी अभिव्यक्ति देते मदन जी ने सूफीयाना अंदाज को भी अपनाया । कबीर, अमीर खुसरों और मध्यकालीन संत कवियों की रचनाओं का निरंतर गायन किया । अपने बंदिशे खुद तैयार की, अपनी मौलिकता और सादगी के साथ पद्मजैसे उच्च सम्मान के अतिरिक्त आपको कला रत्न, सूफी तारीख, संगीत विभूति जैसे प्रादेशिक सम्मान भी मिले । आपके प्रतिष्ठित दाउ रामचंद्र देशमुख सम्मान भी मिला । सन् 2017 में गायन में आजीवन उपलब्दियों के लिए उन्हें चक्रधर सम्मान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के करकमलों से प्राप्त हुआ ।
नि:संदेह मदन चौहान ने अपने संगीत साधना से सुरों को, साजों को, संगीत को नए आयाम दिए हैं । संगीत की निस्वार्थ सेवा और समर्पण से उन्होंने नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा प्रदान की है ।
- परेश कुमार राव,
लेखक वरिष्ठ उद्घोषक, आकाशवाणी केन्द्र, रायपुर (ये लेखक के अपने विचार हैं)

 


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