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बात बेबाक : आखिर किस आधार पर किया जा रहा भेदभाव- चंद्रशेखर शर्मा

बात बेबाक : आखिर किस आधार पर किया जा रहा भेदभाव-  चंद्रशेखर शर्मा
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18+ कोरोना टीके को लेकर तय प्राथमिकताओं में अंत्योदय, बीपीएल, एपीएल की बातों को लेकर लोगों का गुस्सा खद्दरधारियों पर सोशल मीडिया में खूब छाया है। ऐसे में संविधान दिवस को लेकर 26 नवम्बर 2020 को लिखे गए बात बेबाक को पुनः शेयर करना तो बनता है।
हमारा संविधान कहता है कि जाति, धर्म और क्षेत्र के आधार पर किसी से कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। जबकि हकीकत में भेदभाव इन्हीं तीन आधार पर किया जाता है। जन्म से ही हमारी जाति निर्धारित हो जाती है । स्कुल कॉलेज में एडमिशन लेना हो या नौकरी का फार्म भरना हो जाति और धर्म का कालम पहले भरो । बच्चों को स्कूल कालेज में जाति धर्म के नाम पर बंटती छात्रवृत्ति में भेदभाव होता दिखता है , बच्चे पूछते है पापा , ताऊजी , चाचाजी हमारा जाति प्रमाण पत्र क्यो नही बनता ? क्या हमारी कोई जाति नही है ? बच्चों की इस जिज्ञासा , सरकारी योजनाओं में उन्हें समझ आ रहे भेदभाव और सरकारी भेदभाव से उनके मन मस्तिष्क में पनपते जहर का इलाज शायद ही किसी के पास होगा। जातिवाद और वर्णव्यवस्था के विरोध में बात करने वाले छुटभैये दलों के साथ साथ देश की अधिकांश राजनैतिक दलों का गठन भी क्षेत्रवाद जातिवाद और धर्म से प्रभावित दिखता है । क्षेत्रवाद को लेकर कभी मुम्बई से उत्तर भारतीय खदेड़े जाते है तो कभी असम और उड़ीसा से मारवाड़ी भगाओ की अलग कथा है। वैसे भी हमारे देश मे कानून की धाराएं पद, आदमी और समय देख के उपयोग होती है । संविधान की व्याख्या भी लोग अपनी सुविधा और लाभ को देखते करते है। संविधान के नियमो को ना मानना हमारे लिए साधारण सी बात हो चली है। आज कोरोना संकट में मास्क बांधने के नियम और जुर्माने के बावजूद अधिकांश लोग हेलमेट की तरह मास्क पहनना अपनी तौहीन समझते है। सड़क पर दारू पीना अपराध है , सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान मना है कभी किसी ने रोका टोका क्या? इन पर कार्यवाही या तो टारगेट पूरा करने या फिर शिकायत पर होगी। वैसे अक्सर देखने को मिल ही जाता है जब कोई रसूखदार अपराध करे तो एफआईआर जांच व विवेचना के बाद दर्ज होती है , गरीब करे तो पहले एफआईआर फिर जांच विवेचना, आखिर समानता नाम की चिड़िया कहा है ? रसूखदार सड़क पर सामान रख बेचे या अतिक्रमण करे तो कार्यवाही दूर की कौड़ी है और गरीब की झोपड़ी या ठेला पलक झपकते ही जमीदोज हो जाती है। संविधान में सबको बराबरी का अधिकार है किसी से भेदभाव नही होने की बाते तो है पर ऊपरी कामाई का लालच और लालची संविधान की आंखों में धूल झोंकने में मस्त है वैसे भी काम के बोझ के मारे कानून के रखवाले चोरी डकैती रोके वीआईपी की सुरक्षा करे कि सड़क किनारे दारू पीते धुंवा उड़ाते लोगो को खदेड़े ।
खैर जिस तरह महिलायें करवा चौथ का व्रत रख वर्ष में एक दिन पति को परमेश्वर बना देती हैं (बनाने में वे वैसे भी वे माहिर हैं ही) । फिर आज कल चल रहे पश्चिमी देशो के तर्ज पर उनसे उधार लेकर पिता दिवस, माँ दिवस, दोस्ती दिवस फलाना ढिकाना दिवस आदि-इत्यादि मनाकर बाकी पूरे साल का कर्जा हम एक दिन में निपटा देते हैं, उसी प्रकार एक दिन संविधान दिवस मना कर अपने कर्तव्यों व जिम्मेदारियों की इतिश्री कर देते है।
और अंत में :
सुना ये था बदल जायेगा , सब कुछ तेरे आने से,
किसी का कुछ नहीं बदला, बस हालात तेरे बदले हैं।
#जय हो...
 


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